Ads

Monday, August 27, 2018

कफन कहानी। (लेखक मुंशी प्रेमचंद )









             
                           
                              झोपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के पास और अन्दर बेटे कि जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़े की रात थी, प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अन्धकार में लय हो गया था।
घीसू ने कहा - मालूम होता है, बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते ही गया, ज़रा देख तो आ।
माधव चिढ़कर बोला - मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नही जाती ? देखकर क्या करूं?

'तू बड़ा बेदर्द है बे ! साल-भर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई!' 'तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता।'
चमारों का कुनबा था और सारे गाँव में बदनाम। घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता। माधव इतना कामचोर था कि आधे घंटे काम करता तो घंटे भर चिलम पीता। इसीलिये उन्हें कहीं मज़दूरी नहीं मिलती थी। घर में मुट्ठी भर अनाज भी मौजूद हो, तो उनके लिए काम करने कि कसम थी। जब दो-चार फाके हो जाते तो घीसू पेड़ पर चढ़कर लकड़ियां तोड़ लाता और माधव बाज़ार में बेच आता। जब तक वह पैसे रहते, दोनों इधर उधर मारे-मारे फिरते। गाँव में काम कि कमी ना थी। किसानों का गाँव था, मेहनती आदमी के लिए पचास काम थे। मगर इन दोनों को उस वक़्त बुलाते, जब दो आदमियों से एक का काम पाकर भी संतोष कर लेने के सिवा और कोई चारा ना होता। अगर दोनों साधू होते, तो उन्हें संतोष और धैर्य के लिए, संयम और नियम की बिल्कुल ज़रूरत न होती। यह तो इनकी प्रकृति थी। विचित्र जीवन था इनका! घर में मिट्टी के दो-चार बर्तन के सिवा और कोई सम्पत्ति नहीं थी। फटे चीथड़ों से अपनी नग्नता को ढांके हुए जीये जाते थे। संसार की चिंताओं से मुक्त! कर्ज़ से लदे हुए। गालियाँ भी खाते, मार भी खाते, मगर कोई गम नहीं। दीं इतने की वसूली की बिल्कुल आशा ना रहने पर भी लोग इन्हें कुछ न कुछ कर्ज़ दे देते थे। मटर, आलू कि फसल में दूसरों के खेतों से मटर या आलू उखाड़ लाते और भून-भूनकर खा लेते या दस-पांच ईखें उखाड़ लाते और रात को चूसते। घीसू ने इसी आकाश-वृति से साठ साल कि उम्र काट दी और माधव भी सपूत बेटे कि तरह बाप ही के पद चिन्हों पर चल रहा था, बल्कि उसका नाम और भी उजागर कर रहा था। इस वक़्त भी दोनो अलाव के सामने बैठकर आलू भून रहे थे, जो कि किसी खेत से खोद लाए थे। घीसू की स्त्री का तो बहुत दिन हुए देहांत हो गया था। माधव का ब्याह पिछले साल हुआ था। जबसे यह औरत आयी थी, उसने इस खानदान में व्यवस्था की नींव डाली थी और इन दोनो बे-गैरतों का दोजख भरती रहती थी। जब से वह आयी, यह दोनो और भी आराम तलब हो गए थे। बल्कि कुछ अकड़ने भी लगे थे। कोई कार्य करने को बुलाता, तो निर्बयाज भाव से दुगनी मजदूरी माँगते। वही औरत आज प्रसव-वेदना से मर रही थी, और यह दोनों शायद इसी इंतज़ार में थे कि वह मर जाये, तो आराम से सोयें।

घीसू ने आलू छीलते हुए कहा- जाकर देख तो, क्या दशा है उसकी? चुड़ैल का फिसाद होगा, और क्या! यहाँ तो ओझा भी एक रुपया माँगता है!
माधव तो भय था कि वह कोठरी में गया, तो घीसू आलू का एक बड़ा भाग साफ कर देगा। बोला- मुझे वहाँ जाते डर लगता है।
'डर किस बात का है, मैं तो यहाँ हूँ ही।' 'तो तुम्ही जाकर देखो ना।'
'मेरी औरत जब मरी थी, तो मैं तीन दिन तक उसके पास से हिला तक नही; और फिर मुझसे लजायेगा कि नहीं? जिसका कभी मुँह नही देखा; आज उसका उधड़ा हुआ बदन देखूं। उसे तन कि सुध भी तो ना होगी। मुझे देख लेगी तो खुलकर हाथ-पाँव भी ना पटक सकेगी!'
'मैं सोचता हूँ, कोई बाल बच्चा हुआ, तो क्या होगा? सोंठ, गुड़, तेल, कुछ भी तो नही है घर में!'
'सब कुछ आ जाएगा। भगवान् दे तो! जो लोग अभी एक पैसा नहीं दे रहे हैं, वो ही कल बुलाकर रुपये देंगे। मेरे नौ लड़के हुए, घर में कभी कुछ ना था, भगवान् ने किसी ना किसी तरह बेड़ा पार ही लगाया।'
जिस समाज में रात-दिन मेहनत करने वालों कि हालात उनकी हालात से कुछ अच्छी ना थी, और किसानों के मुकाबले में वो लोग, जो किसानों कि दुर्बलताओं से लाभ उठाना जानते थे, कहीँ ज़्यादा सम्पन्न थे, वहाँ इस तरह की मनोवृति का पैदा हो जान कोई अचरज की बात नहीं थी। हम तो कहेंगे, घीसू किसानों से कहीँ ज़्यादा विचारवान था और किसानों के विचार-शुन्य समूह में शामिल होने के बदले बैठक बाजों की कुत्सित मंडली में जा मिलता था। हाँ, उसमें यह शक्ति ना थी कि बैठक बाजों के नियम और नीति का पालन कर्ता। इसलिये जहाँ उसकी मंडली के और लोग गांव के सरगना और मुखिया बने हुए थे, उस पर सारा गांव ऊँगली उठाता था। फिर भी उसे यह तस्कीन तो थी ही, कि अगर वह फटेहाल हैं तो उसे किसानों की-सी जी-तोड़ मेहनत तो नही करनी पड़ती, और उसकी सरलता और निरीहता से दूसरे लोग बेजा फायदा तो नही उठाते। दोनो आलू निकाल-निकालकर जलते-जलते खाने लगे। कल से कुछ नही खाया था। इतना सब्र ना था कि उन्हें ठण्डा हो जाने दे। कई बार दोनों की ज़बान जल गयी। छिल जाने पर आलू का बहरी हिस्सा बहुत ज़्यादा गरम ना मालूम होता, लेकिन दोनों दांतों के तले पड़ते ही अन्दर का हिस्सा ज़बान, तलक और तालू जला देता था, और उस अंगारे को मुँह में रखने से ज़्यादा खैरियत तो इसी में थी कि वो अन्दर पहुंच जाये। वहाँ उसे ठण्डा करने के लिए काफी समान था। इसलिये दोनों जल्द-जल्द निगल जाते । हालांकि इस कोशिश में उन्ही आंखों से आँसू निकल आते ।
घीसू को उस वक़्त ठाकुर कि बरात याद आयी, जिसमें बीस साल पहले वह गया था। उस दावत में उसे जो तृप्ति मिली थी, वो उसके जीवन में एक याद रखने लायक बात थी, और आज भी उसकी याद ताज़ा थी।
बोला- वह भोज नही भूलता। तबसे फिर उस तरह का खाना और भर पेट नही मिला। लड़कीवालों ने सबको भरपेट पूड़ीयां खिलायी थी, सबको!
छोटे-बड़े सबने पूड़ीयां खायी और असली घी की! चटनी, रायता, तीन तरह के सूखे साग, एक रसदार तरकारी, दही, चटनी, मिठाई, अब क्या बताऊँ कि उस भोग में क्या स्वाद मिल, कोई रोक-टोक नहीं थी, जो चीज़ चाहो, मांगो, जितना चाहो खाओ। लोगों ने ऐसा खाया, ऐसा खाया, कि किसी से पानी न पीया गया। मगर परोसने वाले हैं कि पत्तल में गरम-गरम गोल-गोल सुवासित कचौड़ियां डाल देते हैं। मन करते हैं कि नहीं चाहिए, पत्तल को हाथ से रोके हुए हैं, मगर वह हैं कि दिए जाते हैं और जब सबने मुँह धो लिया, तो पान इलाइची भी मिली। मगर मुझे पान लेने की कहाँ सुध थी! खड़ा हुआ ना जाता था। झटपट अपने कम्बल पर जाकर लेट गया। ऐसा दिल दरियाव था वह ठाकुर!
माधव नें पदार्थों का मन ही मन मज़ा लेते हुए कहा- अब हमें कोई ऐसा भोजन नही खिलाता। 'अब कोई क्या खिलायेगा। वह ज़माना दूसरा था। अब तो सबको किफायत सूझती है। शादी-ब्याह में मत खर्च करो। क्रिया-कर्म में मत खर्च करो। पूछो, गरीबों का माल बटोर-बटोर कर कहाँ रखोगे? बटोरने में तो कामं नही है। हाँ , खर्च में किफायती सूझती है। '
'तुमने बीस-एक पूड़ीयां खायी होंगी?'
'बीस से ज़्यादा खायी थी!'
'मैं पचास खा जाता!'
'पचास से कम मैंने भी ना खायी होगी। अच्छा पट्ठा था । तू तो मेरा आधा भी नही है ।'
आलू खाकर दोनों ने पानी पिया और वहीँ अलाव के सामने अपनी धोतियाँ ओढ़्कर पाँव पेट पर डाले सो रहे। जैसे दो बड़े-बड़े अजगर गेदुलियाँ मारे पड़े हो।
और बुधिया अभी तक कराह रही थी।

Edit

सबेरे माधव ने कोठरी में जाकर देखा, तो उसकी स्त्री ठण्डी हो गयी थी। उसके मुँह पर मक्खियां भिनक रही थी। पथ्रायी हुई आँखें ऊपर टंगी हुई थी । साड़ी देह धुल से लथपथ हो रही थी । उसके पेट में बच्चा मर गया था।
माधव भागा हुआ घीसू के पास आया। फिर दोनों ज़ोर-ज़ोर से है-है करने और छाती पीटने लगे। पडोस्वालों ने यह रोना धोना सुना, तो दौड हुए आये और पुरानी मर्यादा के अनुसार इन अभागों को समझाने लगे।
मगर ज़्यादा रोने-पीटने का अवसर ना था। कफ़न और लकड़ी की फिक्र करनी थी। घर में तो पैसा इस तरह गायब था, जैसे चील के घोसले में मॉस!
बाप-बेटे रोते हुए गाव के ज़मिन्दार के पास गए। वह इन दोनों की सूरत से नफरत करते थे। कयी बार इन्हें अपने हाथों से पीट चुके थे। चोरी करने के लिए, वाडे पर काम पर न आने के लिए। पूछा- क्या है बे घिसुआ, रोता क्यों है? अब तो तू कहीँ दिखलायी भी नहीं देता! मालूम होता है, इस गाव में रहना नहीं चाहता।
घीसू ने ज़मीन पर सिर रखकर आंखों से आँसू भरे हुए कहा - सरकार! बड़ी विपत्ति में हूँ। माधव कि घर-वाली गुज़र गयी। रात-भर तड़पती रही सरकार! हम दोनों उसके सिरहाने बैठे रहे। दवा दारु जो कुछ हो सका, सब कुछ किया, पर वोह हमें दगा दे गयी। अब कोई एक रोटी देने वाला भी न रह मालिक! तबाह हो गए । घर उजाड़ गया। आपका घुलाम हूँ, अब आपके सिवा कौन उसकी मिटटी पार लगायेगा। हमारे हाथ में जो कुछ था, वोह सब तो दवा दारु में उठ गया...सरकार कि ही दया होगी तो उसकी मिटटी उठेगी। आपके सिवा किसके द्वार पर जाऊं!
ज़मीन्दार साहब दयालु थे। मगर घीसू पर दया करना काले कम्बल पर रंग चढाना था। जीं में तो आया, कह दे, चल, दूर हो यहाँ से। यों तोबुलाने से भी नही आता, आज जब गरज पढी तो आकर खुशामद कर रह है। हरामखोर कहीँ का, बदमाश! लेकिन यह क्रोध या दण्ड का अवसर न था। जीं में कूदते हुए दो रुपये निकालकर फ़ेंक दिए। मगर सांत्वना का एक शब्द भी मुँह से न निकला। उसकी तरफ ताका तक नहीं। जैसे सिर के बोझ उतारा हो। जब ज़मींदर साहब ने दो रुपये दिए, तो गाव के बनिए-महाजनों को इनकार का सहस कैसे होता? घीसू ज़मीन्दार का ढिंढोरा भी पीटना जानता था। किसी ने दो आने दिए, किसी ने चार आने। एक घंटे में घीसू और माधव बाज़ार से कफ़न लाने चले। इधर लोग बांस-वांस काटने लगे।
गाव की नर्म दिल स्त्रियां आ-आकर लाश देखती थी, और उसकी बेबसी पर दो बूँद आँसू गिराकर चली जाती थी।

Edit

बाज़ार में पहुंचकर, घीसू बोला - लकड़ी तो उसे जलाने भर कि मिल गयी है, क्यों माधव! माधव बोला - हाँ, लकड़ी तो बहुत है, अब कफ़न चाहिऐ।
'तो चलो कोई हल्का-सा कफ़न ले लें।
'हाँ, और क्या! लाश उठते उठते रात हो जायेगी। रात को कफ़न कौन देखता है!'
'कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते-जीं तन धांकने को चीथ्डा भी न मिले, उसे मरने पर नया कफ़न चाहिऐ।'
'कफ़न लाश के साथ जल ही तो जाता है।'
'क्या रखा रहता है! यहीं पांच रुपये पहले मिलते, तो कुछ दवा-दारु कर लेते।
दोनों एक दुसरे के मॅन कि बात ताड़ रहे थे। बाज़ार में इधर-उधर घुमते रहे। कभी इस बजाज कि दुकान पर गए, कभी उस दुकान पर! तरह-तरह के कपडे, रेशमी और सूती देखे, मगर कुछ जंचा नहीं. यहाँ तक कि शाम हो गयी. तब दोनों न-जाने किस दयवी प्रेरणा से एक मधुशाला के सामने जा पहुंचे और जैसे पूर्व-निश्चित व्यवस्था से अन्दर चले गए. वहाँ ज़रा देर तक दोनों असमंजस में खडे रहे. फिर घीसू ने गड्डी के सामने जाकर कहा- साहूजी, एक बोतल हमें भी देना। उसके बाद कुछ चिखौना आया, तली हुई मछ्ली आयी, और बरामदे में बैठकर शांतिपूर्वक पीने लगे। कई कुज्जियां ताबड़्तोड़ पीने के बाद सुरूर में आ गए. घीसू बोला - कफ़न लगाने से क्या मिलता? आख़िर जल ही तो जाता. कुछ बहु के साथ तो न जाता. माधव आसमान कि तरफ देखकर बोला, मानो देवताओं को अपनी निश्पाप्ता का साक्षी बाना रह हो - दुनिया का दस्तूर है, नहीं लोग बाम्नों को हज़ारों रुपये क्यों दे देते हैं? कौन देखता है, परलोक में मिलता है या नहीं!
'बडे आदमियों के पास धन है,फूंके. हमारे पास फूंकने को क्या है!'
'लेकिन लोगों को जवाब क्या दोगे? लोग पूछेंगे नहीं, कफ़न कहाँ है?'
घीसू हसा - अबे, कह देंगे कि रुपये कंमर से खिसक गए। बहुत ढूंदा, मिले नहीं. लोगों को विश्वास नहीं आएगा, लेकिन फिर वही रुपये देंगे। माधव भी हंसा - इन अनपेक्षित सौभाग्य पर. बोला - बड़ी अच्छी थी बेचारी! मरी तो ख़ूब खिला पिला कर!
आधी बोतल से ज़्यादा उड़ गयी। घीसू ने दो सेर पूड़ियाँ मंगायी. चटनी, आचार, कलेजियां. शराबखाने के सामने ही दुकान थी. माधव लपककर दो पत्तलों में सारे सामान ले आया. पूरा डेड रुपया खर्च हो गया. सिर्फ थोड़े से पैसे बच रहे. दोनो इस वक़्त इस शान से बैठे पूड़ियाँ खा रहे थे जैसे जंगल में कोई शेर अपना शिकार उड़ रह हो. न जवाबदेही का खौफ था, न बदनामी का फिक्र. इन सब भावनाओं को उन्होने बहुत पहले ही जीत लिया था.
घीसू दार्शनिक भाव से बोला - हमारी आत्म प्रसन्न हो रही है तो क्या उसे पुन्न न होगा? माधव ने श्रध्दा से सिर झुकाकर तस्दीख कि - ज़रूर से ज़रूर होगा. भगवान्, तुम अंतर्यामी हो. उसे बय्कुंथ ले जान. हम दोनो हृदय से आशीर्वाद दे रहे हैं. आज जो भोजन मिल वोह कहीँ उम्र-भर न मिल था. एक क्षण के बाद मॅन में एक शंका जागी. बोला - क्यों दादा, हम लोग भी एक न एक दिन वहाँ जायेंगे ही? घीसू ने इस भोले-भाले सवाल का कुछ उत्तर न दिया. वोह परलोक कि बाते सोचकर इस आनंद में बाधा न डालना चाहता था।
'जो वहाँ हम लोगों से पूछे कि तुमने हमें कफ़न क्यों नही दिया तो क्या कहेंगे?'
'कहेंगे तुम्हारा सिर!'
'पूछेगी तो ज़रूर!'
'तू कैसे जानता है कि उसे कफ़न न मिलेगा? तू मुझेईसा गधा समझता है? साठ साल क्या दुनिया में घास खोदता रह हूँ? उसको कफ़न मिलेगा और बहुत अच्छा मिलेगा!' माधव को विश्वास न आया। बोला - कौन देगा? रुपये तो तुमने चाट कर दिए। वह तो मुझसे पूछेगी। उसकी माँग में तो सिन्दूर मैंने डाला था।
घीसू गरम होकर बोला - मैं कहता हूँ, उसे कफ़न मिलेगा, तू मानता क्यों नहीं?
'कौन देगा, बताते क्यों नहीं?' 'वही लोग देंगे, जिन्होंने अबकी दिया । हाँ, अबकी रुपये हमारे हाथ न आएंगे। '
ज्यों-ज्यों अँधेरा बढता था और सितारों की चमक तेज़ होती थी, मधुशाला, की रोनक भी बढती जाती थी। कोई गाता था, दींग मारता था, कोई अपने संगी के गले लिपट जाता था। कोई अपने दोस्त के मुँह में कुल्हड़ लगाए देता था। वहाँ के वातावरण में सुरूर था, हवा में नशा। कितने तो यहाँ आकर एक चुल्लू में मस्त हो जाते थे। शराब से ज़्यादा यहाँ की हवा उन पर नशा करती थी। जीवन की बाधाये यहाँ खीच लाती थी और कुछ देर के लिए यह भूल जाते थे कि वे जीते हैं कि मरते हैं। या न जीते हैं, न मरते हैं। और यह दोनो बाप बेटे अब भी मज़े ले-लेकर चुस्स्कियां ले रहे थे। सबकी निगाहें इनकी और जमी हुई थी। दोनों कितने भाग्य के बलि हैं! पूरी बोतल बीच में है।
भरपेट खाकर माधव ने बची हुई पूडियों का पत्तल उठाकर एक भिखारी को दे दिया, जो खडा इनकी और भूखी आंखों से देख रह था। और देने के गौरव, आनंद, और उल्लास का अपने जीवन में पहली बार अनुभव किया।
घीसू ने कहा - ले जा, ख़ूब खा और आर्शीवाद दे। बीवी कि कमायी है, वह तो मर गयी। मगर तेरा आर्शीवाद उसे ज़रूर पहुंचेगा। रोएँ-रोएँ से आर्शीवाद दो, बड़ी गाडी कमायी के पैसे हैं!
माधव ने फिर आसमान की तरफ देखकर कहा - वह बैकुंठ में जायेगी दादा, बैकुंठ की रानी बनेगी।
घीसू खड़ा हो गया और उल्लास की लहरों में तैरता हुआ बोला - हाँ बीटा, बैकुंठ में जायेगी। किसी को सताया नहीं, किसी को दबाया नहीं। मरते-मरते हमारी जिन्दगी की सबसे बड़ी लालसा पूरी कर गयी। वह न बैकुंठ जायेगी तो क्या मोटे-मोटे लोग जायेंगे, जो गरीबों को दोनों हाथों से लूटते हैं, और अपने पाप को धोने के लिए गंगा में नहाते हैं और मंदिरों में जल चडाते हैं?
श्रद्धालुता का यह रंग तुरंत ही बदल गया। अस्थिरता नशे की खासियत है। दु:ख और निराशा का दौरा हुआ। माधव बोला - मगर दादा, बेचारी ने जिन्दगी में बड़ा दु:ख भोगा। कितना दु:ख झेलकर मरी!
वह आंखों पर हाथ रखकर रोने लगा, चीखें मार-मारकर।
घीसू ने समझाया - क्यों रोता हैं बेटा, खुश हो कि वह माया-जाल से मुक्त हो गई, जंजाल से छूट गयी। बड़ी भाग्यवान थी, इतनी जल्द माया-मोह के बन्धन तोड़ दिए।
और दोनों खडे होकर गाने लगे -
  "ठगिनी क्यों नैना झाम्कावे! ठगिनी ...!" 
पियाक्क्ड्डों की आँखें इनकी और लगी हुई थी और वे दोनो अपने दिल में मस्त गाये जाते थे। फिर दोनों नाचने लगे। उछले भी, कूदे भी। गिरे भी, मटके भी। भाव भी बनाए, अभिनय भी किये, और आख़िर नशे से मदमस्त होकर वहीँ गिर पडे। सुबह जब गांव बाले दोनों को खोजते पहुचे तो देखा की दोनों मदिरा के के सुरूर में मदमस्त पड़े बेचारी बुधिया को दुवाए दे रहे है। गांव के आदमी ने उठा कर पुछा की कफ़न लिया या उस मरी हुई को भी लूट खाये। तभी घीसू बोला बेचारी ने मरते हुए भूखो की खिला कर मरी है। इसमें बुरा क्या है। कोन सा कफ़न लेकर ही बैकुंठ में जायेगी । उनकी इस करतूत पर किसी को उनसे घृणा ही तो किसी क्रोध आया पर करें तो क्या ये तो सब जानते ही थे की दोनों कामचोर है ही आज मकार भी हुए सबने त्रिस्कार की निगाहो से देखा और चले आये। माधव सोच मगन है की अब क्या होये घीसू:- मैंने कहा था न की कफ़न मिलेगा चल देख तो ले। इधर बांस कट चुके है पुबाल बिछ गयी । मरी हुई अभागिन को गांव की औरतों ने ही जो हो सका पहन कर लिटा दिया इन्तजार था तो बस कफ़न का । देखा तो जमींदार ने रेशमी कफ़न भिजवाया है । बाह रे भला हो ऐसा दयालु जमीदार जिसने उफ्फ़ तक न की जैसे वो जान गया हो की बेचारी ने कितने जतन से उस घर की बेल को सीचां आज उसको एक कफ़न भी नसीब नही। कफ़न पड़ा बुधिया को मानो सब परशानियो से मुक्ति मिली हाय रे जिसके साथ व्याही उसी ने ऐसा किआ सारे जीवन जो मिला उसी में सन्तोष किया सेवा की जतन किया। लेकिन मानो आज सब का अंत हुआ। बुढ़िया को मरे आज छः दिन हुए घीसू पड़ा हु आसमान तक रहा है तभी जमींदार का आदमी आया घीसू से कहा जमींदार ने बुलाया है । घीसू ने सोचा दो रुपया का हिसाब मांगेगा। हाय रे जालिम आज न छोड़ेगा बोला माधव को आने दो आता हूँ। माधव ईख चुराते पकड़ा गया वो वही है तू चल। जमीन दार ने देखा घीसू चला आ रहा है कुछ न कहा घीसू ने पाँव में सर राखकर कहा मई बाप आप ने बुलाया तो आ गया। मेरा जीवन तो अँधा हो गया इसकी मेहरारू क्या गयी सुख चैन भी गया इसे अब होश नही इसे छमा कर दो । छमा कर दूंगा अब इस गांव से चला जा अब यहाँ तेरा बसर नही ।दोनों ने अभागिन के साथ ऐसा किआ निर्लज़ो लाज ना आई चले जाओ मुह तक न दिखाना कामचोर तो थे ही अब अपराधी भी हो और वो भी उसके जिसने तुम्हारे लिए अपने जीवन का बलिदान क़र दिया । दोनों ने गाव को छोड़ दिया अब अपने कर्मो को कोसते हुए चले जा रहे है की कैसा अभागा दिन है जिस ड्योढ़ी पर जीते साल काट दिए वाही अपनी ना रही क्या करे कहा जाए। भूखा आदमी कम से कम अपनी छत के नीचे सो तो सकता है पैर आज वो छत भी न रही। हाय रे कैसी जालिम दुनिया है की जीतो के सर से छत छीन ली क्या इतना जरुरी था कफ़न।


                             समाप्त

Sunday, August 26, 2018

New pension scheme link

https://www.google.co.in/url?sa=t&source=web&rct=j&url=https://enps.nsdl.com/eNPS/NationalPensionSystem.html&ved=2ahUKEwiTqcL4pIzdAhVESX0KHb3DDvsQFjAAegQIARAB&usg=AOvVaw232EyEG3gfSkEPTl8XUkgB

Today india news

*🌅🗞 समाचार सुप्रभात🌅*

   *27 अगस्त, 2018 सोमवार*
             🔰🔰🔰

*_📌Top Headlines_*

⚜PM Modi lauds grit &courage of Kerala; says state will rise again

⚜PM Modi asserts country will not tolerate rapists

⚜Parliament's monsoon session will be remembered for upholding social justice & youth welfare: PM

⚜JnK: Four terrorists of Al Badr outfit arrested from Kalaroos area of Kupwara district

⚜Torrential rains throw life out of gear in many districts of UP, affecting road and rail traffic

*_🇮🇳NATIONAL NEWS_*

⚜Raksha Bandhan is symbol of care and protection: V Prez

⚜Naxal violence in decreased as development has reached remote areas: M J Akbar

⚜Govt invites nominations for 1st CSR Awards

⚜President, Vice President greet people on eve of Rakshabandhan

 *_🌍INTERNATIONAL NEWS_*

⚜US senator John McCain dies at 81

⚜Strong quake hits northwest Iran, killing one and wounding 58

⚜Hundreds of Venezuelan migrants enter Peru despite passport rule

⚜Congo Ebola death toll rises to 67; prototype drug rolled out

⚜Egypt officials say 4 Policemen, 4 Militants killed in Sinai

*_⚽SPORTS NEWS_*

⚜Virat Kohli regains top spot in ICC Test Rankings

⚜Hockey India announces U18 men's & women's teams for Youth Olympic Games

⚜PM congratulates Rohan Bopanna and Divij Sharan on winning Gold

⚜Anand draws with Aronian in round five of Sinquefield Cup

⚜Jhulan Goswami announces her retirement from T20 Internationals

*_🇦🇶STATE NEWS_*

⚜JnK: Amarnath Yatra concluded on Shravan Purnima coinciding with Raksha Bandhan

⚜DMK Working President MK Stalin files his nomination for post of the Party President

⚜Chhattisgarh: Man gets death sentence for raping, killing deaf and mute girl

⚜Shamli hooch tragedy: 5 constables of district excise dept suspended

⚜Enough evidence to summon Lalu as accused in IRCTC hotels PMLA case: ED to Delhi Court

*_🛑मुख्य समाचार :-_*

▪प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा - देश दुष्‍कर्म करने वालों को बर्दाश्‍त नहीं करेगा। मन की बात में प्रधानमंत्री ने आशा व्‍यक्‍त की कि संसद द्वारा पारित संशोधन अधिनियम से  महिलाओं के प्रति अपराधों की कारगर रोकथाम में मदद मिलेगी

▪प्रधानमंत्री ने कहा संसद का वर्षाकालीन सत्र सामाजिक न्‍याय और युवा कल्‍याण का संरक्षण करने के लिए याद किया जाएगा

▪श्री मोदी ने केरल के लोगों के जज्‍बे और साहस की सराहना करते हुए कहा कि राज्‍य फिर उठ खड़ा होगा

▪जम्‍मू कश्‍मीर के कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा से अल-बद्र गिरोह के चार आतंकवादी गिरफ्तार

▪एशियाई खेलों में भारत ने पांच रजत और दो कांस्‍य पदक जीते

*_💢विविध खबरें_*

🔺सोशल मीडिया से अब 'चुनावी खेल' संभव नही, सरकार रखेगी पैनी नजर

🔺BJP को हराने के लिए साथ आएं गैर-सांप्रदायिक दल : अमर्त्य सेन

🔺2019 का शंखनाद: बीजेपी का ‘दलित प्रेम’ देख UP में ग्राउंड रिपोर्ट तैयार कर रही बसपा

🔺डीजल की कीमतों ने तोड़े सारे रिकॉर्ड, पेट्रोल उच्चतम स्तर के करीब

🔺J&K: कुपवाड़ा में 4 आतंकियों ने सुरक्षाबलों के आगे किया सरेंडर

🔺सिद्धारमैया के बयान पर बोले कुमारस्वामी- मैं कुर्सी से नहीं बंधा, मेरा काम बोलेगा

🔺कैलिफॉर्निया में अकाली नेता पर फिर हमला- पगड़ी उतारकर,पोती कालिख

🔺ब्रिटेन में राहुल गांधी की सुरक्षा में बड़ी चूक, रैली में घुसे खालिस्तान समर्थक

🔺CM योगी और नाईक ने रक्षाबंधन पर्व पर प्रदेशवासियों को दी बधाई

🔺छड़ी मुबारक के साथ सम्पन्न अमरनाथ यात्रा

🔺पाक दौरे को लेकर मचे बवाल पर बोले सिद्धूःमंत्रियों के बयान राजनीति से प्रेरित, मुझे परवाह नहीं

🔺नेता एप सर्वे : अभी चुनाव हुए तो भाजपा को 70 सीटों का नुक्सान

🔺देश में पहली बार जैव ईधन से उड़ान भरेगा विमान

🔺अमर सिंह ने कहा-अखिलेश यादव समाजवादी नहीं, नमाजवादी पार्टी के अध्यक्ष

🔺छलका मुलायम का दर्द भावुक होकर बोले, शायद मरने के बाद हो मेरा सम्मान

🔺एशियन गेम्स 2018: सायना नेहवाल का शानदार प्रदर्शन, सेमीफाइनल में बनाई जगह

🔺अफगानिस्तानः हवाई हमले में इस्लामिक स्टेट का नेता साद अरहाबी मारा गया

🔺ईरान ने वित्त मंत्री पर चला महाभियोग

🔺अमेरिकी विदेश मंत्री का दौरा रद्द, उत्तर कोरियाई मीडिया ने बताया- साजिश

🔺सहयोगी देशों के साथ सीरिया में नए हमले के लिए तैयार अमेरिका : रूस

🔺ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री जूली बिशप ने इस्तीफा दिया

🔺ईरान में भूकंप के झटके, 2 की मौत

🔺अमेरिकी सीनेटर जॉन मैक्कन का निधन, ओबामा ने जताया शोक

🔺पोप फ्रांसिस पहुंचे आयरलैंड, कहा- 'चर्च में यौन शोषण शर्मसार करनेवाला

🔺चुनावी अपराध पर लगाम लगाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

🔺बैंकों के ढीले रवैये के कारण आभूषण निर्यातकों को नहीं मिल रहा पर्याप्त सोना

🔺BANK खाते में पैसे के साथ सोना भी करा सकेंगे जमा, मोदी सरकार ला रही नई अकाउंट स्की'म

🔺सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला, तलाक की अर्जी अगर पेंडिंग है तो भी दूसरी शादी मान्य

🔺कश्मीर में मणिशंकर अय्यर बोले- 'आर्टिकल 35ए को खत्मी नहीं करना चाहिए'

Review about moive happy phirr baag jayegi



हैप्पी के भागने की कहानी का पहला भाग आपने साल 2016 में देखा था। फिल्म सफल रही और तय किया गया कि इसका अगला भाग और भी ज्यादा दिलचस्प बनाया जाए। वैसे अगर आपने फिल्म का पहला भाग नहीं देखा है, तब भी दूसरे भाग से आसानी से कनेक्ट हो जाएंगे। पिछली बार हैप्पी पाकिस्तान भाग गई थी और इस बार दो-दो हैप्पी हैं, जो चीन के अलग-अलग शहरों में भाग रही हैं। इस बार उन्हें ढूढ़ने से ज्यादा बचाने की जद्दोजहद भी है। फिल्म भले चीन पर बेस्ड हो, लेकिन वह आपको बहुत ही खूबसूरती से लगातार पटियाला, अमृतसर, दिल्ली, कश्मीर और पाकिस्तान से जोड़ कर रखती हैं। फिल्म के राइटर और निर्देशक मुदस्सर अजीज ने अपनी पूरी फिल्म में बेहतरीन डायलॉग-बाजी से भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच की तनातनी पर व्यंग्य किया है।

कहानी: चीन के शांघाई एयरपोर्ट पर अमृतसर की दो बहनें एक साथ उतरती हैं। पहली हैप्पी (डायना पेंटी) अपने पति गुड्डू (अली फजल) के साथ एक म्यूजिक कॉन्सर्ट में आई है और दूसरी हैप्पी (सोनाक्षी सिन्हा) शांघाई की एक यूनिवर्सिटी में प्रफेसर का जॉब जॉइन करने आई है। एयरपोर्ट पर कुछ चीनी किडनैपर पहली हैप्पी (डायना पेंटी) को किडनैप करने आते हैं, लेकिन एक जैसे नाम होने की वजह से वह गलती से दूसरी हैप्पी (सोनाक्षी) को किडनैप कर लेते हैं। इस अपहरण में किडनैपर पटियाला से दमन बग्गा (जिम्मी शेरगिल) और पाकिस्तान से पुलिस ऑफिसर उस्मान अफरीदी (पियूष मिश्रा) को भी अगवा कर चीन लाते हैं। आगे कहानी क्या मोड़ लेती है, यब जानने के लिए आपको सिनेमा हॉल का रुख करना होगा।

Saturday, August 25, 2018

रक्षाबंधन त्योहार

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।[1] रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।

पौराणिक प्रसंग

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।[18]
स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है।[12] कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।[ङ] भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

ऐतिहासिक प्रसंग


राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।[19] एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।[19]
महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं।[20]महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तान्त भी मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।[21]









Friday, August 24, 2018

History of india

Optimized 40 minutes ago
https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4
hi.m.wikipedia.org
प्राचीन भारत
मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है।[1]
प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के साधन
पाषाण युग
पाषाण युग से तात्पर्य ऐसे काल से है जब लोग पत्थरों पर आश्रित थे। पत्थर के औज़ार, पत्थर की गुफ़ा ही उनके जीवन के प्रमुख आधार थे। यह मानव सभ्यता के आरंभिक काल में से है जब मानव आज की तरह विकसित नहीं था। इस काल में मानव प्राकृतिक आपदाओं से जूझता रहता था और शिकार तथा कन्द-मूल फल खाकर अपना जीवन बसर करता था।
पुरापाषाण युग
हिमयुग का अधिकांश भाग पुरापाषाण काल में बीता है। भारतीय पुरापाषाण युग को औजारों, जलवायु परिवर्तनों के आधार पर तीन भागों में बांटा जाता है -
  • आरंभिक या निम्न पुरापाषाण युग (25,00,000 ईस्वी पूर्व - 100,000 ई. पू.)
  • मध्य पुरापाषाण युग (1,00,000 ई. पू. - 40,000 ई. पू.)
  • उच्च पुरापाषाण युग (40,000 ई.पू - 10,000 ई.पू.)
आदिम मानव के जीवाश्म भारत में नहीं मिले हैं। महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान पर मिले तथ्यों से अंदेशा होता है कि मानव की उत्पत्ति 14 लाख वर्ष पूर्व हुई होगी। यह बात लगभग सर्वमान्य है कि अफ़्रीका की अपेक्षा भारत में मानव बाद में बसे। यद्दपि यहां के लोगों का पाषाण कौशल लगभग उसी तरह विकसित हुआ जिस तरह अफ़्रीका में। इस समय का मानव अपना भोजन कठिनाई से ही बटोर पाता था। वह ना तो खेती करना जानता था और ना ही घर बनाना। यह अवस्था 9000 ई.पू. तक रही होगी।
पुरापाषाण काल के औजार छोटानागपुर के पठार में मिले हैं जो 1,00,000 ई.पू. तक हो सकते हैं। आंध्र प्रदेश के कुर्नूलजिले में 20,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. के मध्य के औजार मिले हैं। इनके साथ हड्डी के उपकरण और पशुओं के अवशेष भी मिले हैं। उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले की बेलन घाटी में जो पशुओं के अवशेष मिले हैं उनसे ज्ञात होता है कि बकरीभेड़गायभैंस इत्यादि पाले जाते थे। फिर भी पुरापाषाण युग की आदिम अवस्था का मानव शिकार और खाद्य संग्रह पर जीता था। पुराणों में केवल फल और कन्द मूल खाकर जीने वालों का जिक्र है। इस तरह के कुछ लोग तो आधुनिक काल तक पर्वतों और गुफाओं में रहते आए हैं।
नवपाषाण युग
भारत मे नवपाषाण युग के अवशेष सम्भवतः 6000 ई०पू० से 1000 ई०पू के है।विकास कि यह अवधि भारतीय उपमहाद्वीप मे कुछ देर से आयी क्योकि ऐसा माना जाता है कि विश्व के बडे भूभाग( south west Asia) मे यह युग 8000-7000 ई०पू० के आसपास पनपा, यहाँ से नील घाटी (Egypt) होते हुए यूरोप पहुंचा। इस युग मे मानव पत्थर कि बनी हाथ कि कुल्हाड़ियां आदि औजार पत्थर को छिल घीस और चमकाकर तैयार करता था, उत्तरी भारत मे नवपाषाण युग का स्थल बुर्जहोम (कश्मीर) मे पाया गया है। भारत मे नव पाषाण काल के प्रमुख चार स्थल है
ताम्र पाषाण युग
नवपाषाण युग का अन्त होते होते धातुओं का प्रयोग शुरू हो गया था। ताम्र पाषाणिक युग में तांबा तथा प्रस्तर के हथियार ही प्रयुक्त होते थे। इस समय तक लोहा या कांसे का प्रयोग आरम्भ नहीं हुआ था। भारत में ताम्र पाषाण युग की बस्तियां दक्षिण पूर्वीराजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण पूर्वी भारत में पाई गई है।
कांस्य युग और सिंधु घाटी सभ्यता
बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक इतिहासकारों की यह मान्यता थी कि वैदिक सभ्यता भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है। परन्तु सर दयाराम साहनी के नेतृत्व में १९२१ में जब हड़प्पा(पंजाब के माँन्टगोमरी जिले में स्थित) की खुदाई हुई तब इस बात का पता चला कि भारत की सबसे पुरानी सभ्यता वैदिक नहीं वरन सिन्धु घाटी की सभ्यता है। अगले साल अर्थात १९२२ में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो(सिन्ध के लरकाना जिले में स्थित) की खुदाई हुई। हड़प्पा टीले के बारे में सबसे पहले चार्ल्स मैसन ने १९२६ में उल्लेख किया था। मोहनजोदड़ो को सिन्धी भाषा में मृतकों का टीला कहा जाता है। १९२२ में राखालदास बनर्जी ने और इसके बाद १९२२ से १९३० तक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में यहां उत्खनन कार्य करवाया गया।
सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ईसापूर्व से 1750 ईसापूर्व तक) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ।मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को अबतक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया सिंधु घाटी सभ्यता का। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।
इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिन्धु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहाँ के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहाँ के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत देख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान् थे।
मोहनजोदड़ो का अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागार, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है।
उत्पत्ति
इतनी विस्तृत सभ्यता होने के बावजूद भी इसकी उत्पत्ति को लेकर आज भी विद्वानों में मतैक्य का अभाव है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हड़प्पा संस्कृति के जितने भी स्थलों की अब तक खुदाई हुई है वहां सभ्यता के विकास अनुक्रम का चिन्ह स्पष्ट नही मिलता है अर्थात इस सभ्यता के अवशेष जहां कहीं भी मिले हैं अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में ही मिले हैं।
सर जॉन मार्शल, गार्डन चाईल्ड, मार्टीमर व्हीलर आदि इतिहासकारों की मान्यता है कि हड़प्पा सभ्यता की उत्पत्ति में विदेशी तत्व का हाथ रहा है। इन इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पा की उत्पत्ति मेसोपोटामिया की शाखा सुमेरिया की सभ्यता की प्रेरणा से हुई है। इन दोनो सभ्यताओं में कुछ समानताएं भी देखने को मिलती है जो इस प्रकार है -
  • (१) दोनो ही सभ्यता नगरीय है।
  • (२) दोनो ही सभ्यताओं के निवासी कांसे और तांबे के साथ साथ पाषाण के लघु उपकरणों का प्रयोग करते थे।
  • (३) दोनों ही सभ्यताओं के भवन निर्माण में कच्चे और पक्के दोनो ही प्रकार के ईंटों का प्रयोग हुआ है।
  • (४) दोनो को लिपि का ज्ञान था।
इन्ही समानताओं के आधार पर व्हीलर ने सैन्धव सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता का एक उपनिवेश बताय़ा था। लेकिन इन समानताओं के बावजूद कुछ ऐसी असमानताएं भी हैं जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना सुमेरिया की सभ्यता से अधिक सुव्यवस्थित है। दोनो ही सभ्यताओं में आम उपयोग की चीजें काफी भिन्न हैं जैसे बर्तन, उपकरण, मूर्तियां, मुहरें आदि। फिर दोनों ही सभ्यताओं के लिपि में भी अंतर है। जहां सुमेरियाई लिपि में ९०० अक्षर हैं वहीं सिन्धु लिपि में केवल ४०० अक्षर हैं। इन विभिन्नताओं के होते हुए दोनो सभ्यताओं को समान मानना समुचित नहीं लगता।
वैदिक काल
मुख्य लेख : वैदिक सभ्यता
भारत में आर्यों का आगमन हुआ, वे युरोपीय थे। ऐसा कुछ पश्चिमी विद्वानों का मत है तथा पश्चिम में यह सिद्धांत अब भी प्रचलित है। बाद में मुइर जैसे विद्वानों ने यह मान लिया कि यह अप्रमाणिक है क्योंकि इसके प्रमाण नहीं मिले। अतः वेदों का लेखनकाल ५००० वर्ष पूर्व के आसपास का माना जाने लगा जो हिन्दू तर्कसंगत भी है। ऋग्वैदिक काल के बाद भारत में धीरे धीरे सभ्यता का स्वरूप बदलता गया। परवर्ती सभ्यता को उत्तरवैदिक सभ्यता कहा जाता है। उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था और कठोर रूप से पारिभाषित तथा व्यावहारिक हो गई। ईसी पूर्व छठी सदी में, इस कारण, बौद्धऔर जैन धर्मों का उदय हुआ। अशोक जैसे सम्राट ने बौद्ध धर्म के प्रचार में बहुत योगदान दिया। इसके कारण बौद्ध धर्म भारत से बाहर अफ़ग़ानिस्तान तथा बाद में चीन और जापानपहुंच गया।अशोक के पुत्र ने श्रीलंका में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया। गुप्त वंश के दौरान भारत की वैदिक सभ्यता अपने स्वर्णयुग में पहुंच गई। कालिदास जैसे लेखकों ने संस्कृत की श्रेष्ठतम रचनाएं की।
बौद्ध और जैन धर्म
मुख्य लेख : बौद्ध धर्म
ईसा पूर्व छठी सदी तक वैदिक कर्मकांडों की परंपरा का अनुपालन कम हो गया था। उपनिषद ने जीवन की आधारभूत समस्या के बारे में स्वाधीनता प्रदान कर दिया था। इसके फलस्वरूप कई धार्मिक पंथों तथा संप्रदायों की स्थापना हुई। उस समय ऐसे किसी 62 सम्प्रदायों के बार में जानकारी मिलती है। लेकिन इनमें से केवल 2 ने भारतीय जनमानस को लम्बे समय तक प्रभावित किया - जैन और बौद्ध।
जैन धर्म पहले से ही विद्यमान था। दोनो श्रमण संस्कृति पर आधारित है। वैदिको ने श्रमण संस्कृति को बाद मे उपनिषदो मे अपनाया।
जैन धर्म
जैन धर्म के दो तीर्थकरों - ऋषभनाथ तथा अरिष्टनेमि- का उल्लेख ऋग्वेद में पाया जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पा की खुदाई में जो नग्न धड़ की मूर्ति मिली है वो किसी तीर्थकर की है। पार्श्वनाथ तेइसवें तीर्थकर तथा भगवान महावीर चौबीसवें तीर्थकर थे। वर्धमान महावीर जो कि जैनों के सबसे प्रमुख तथा अन्तिम तीर्थकर थे, का जन्म 540 ईसापूर्व के आसपास वैशाली के पास कुंडग्राम में हुआ था। 42 वर्ष की अवस्था में उन्हें कैवल्य (परम ज्ञान) प्राप्त हुआ।
महावीर ने पार्श्वनाथ के चार सिद्धांतों को स्वीकार किया -
  • अहिंसा - जीव हत्य न करना
  • अमृषा - झूठ न बोलना
  • अस्तेय - चोरी न करना
  • अपरिग्रह - सम्पत्ति इकठ्ठा न करना
इसके अतिरिक्त उन्होंने अपना पांचवा सिद्धांत भी अपने उपदेशों में जोड़ा -
  • ब्रह्मचर्य - इंद्रियों पर नियंत्रण
इस सम्प्रदाय के दो अंग हैं - श्वेताबर तथा दिगंबर
बौद्ध धर्म
जैन धर्म की तरह इसका मूल भी एक उच्चवर्गीय क्षत्रिय परिवार से था। गौतम नाम से जन्में महात्मा बुद्ध का जन्म 566 ईसापूर्व में शाक्यकुल के राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। इन्होने भी सांसारिक जीवन जीने के बाद एक दिन (या रात) अचानक से अपना गार्हस्थ छोड़कर सत्य की खोज में चल पड़े।
बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य समाहित हैं -
  • दुख
  • दुख समुद्दय
  • दुख निरोध
  • दुख निरोध गामिनी प्रतिपदा।
उन्होंने अष्टांगिक मार्ग का सुझाव दिया जिसका पालन करके मनुष्य पुनर्जन्म के बंधन से दूर हो सकता है -
  • सम्यक वाक्
  • सम्यक कर्म
  • सम्यक आजीविका
  • सम्यक व्यायाम
  • सम्यक स्मृति
  • सम्यक समाधि
  • सम्यक संकल्प
  • सम्यक दृष्टि
बौद्ध धर्म का प्रभाव भारत के बाहर भी हुआ। अफ़ग़ानिस्तान(उस समय फ़ारसी शासकों के अधीन), चीनजापान तथा श्रीलंका के अतिरिक्त इसने दक्षिण पूर्व एशिया में भी अपनी पहचान बनाई।
यूनानी तथा फारसी आक्रमण
उस समय उत्तर पश्चिमी भारत में कोई खास संगठित राज्य नहीं था। लगातार शक्तिशाली हो रहे फ़ारसी साम्राज्य की नज़र इधर की ओर भी गई। हंलांकि अब तक फ़ारस पर राज कर रहे चन्द्र राजा यूनान, पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशिया की ओर बढ़ रहे थे, उन्होंने भारत की अनदेखी नहीं की थी। शक्तिशाली अजमीड/हखामनी (Achaemenid) शासकों की निगाह इस क्षेत्र पर थी और Kuru-s कुरुस साईरस(558ईसापूर्व - 530 ईसापूर्व) ने हिंदूकुश के दक्षिण के रजवाड़ो को अपने अधीन कर लिया। इसके बाद दारयवाहु (डेरियस, 522-486 ईसापूर्व) के शासनकाल में फ़ारसी शासन के विस्तार के साक्ष्य मिलते हैं। इसके उत्कीर्ण लेखों में दो ज़ग़ह हिन्दू को इसके राज्य का हिस्सा बताया गया है। इस संदर्भ में हिन्दू शब्द का सही अर्थ बता पाना कठिन है पर इसका तात्पर्य किसा ऐसे प्रदेश से अवश्य है जो सिंधु नदी के पूर्व में हो।
ईसापूर्व चौथी सदी में जब यूनानी और फ़ारसी शासक पश्चिम एशिया (आधुनिक तुर्की का क्षेत्र) पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। मकदूनिया के राजा सिकंदर के हाथों हखामनी शासक डेरियस तृतीय के हारने के पश्चात स्थिति में परिवर्तन आ गया। सिकंदर पश्चिम एशिया जीतने के बाद अरबमिस्र तथा उसके बाद फ़ारस के केन्द्र (ईरान) तक पहुंच गया। इतने से भी जब उसको संतोष नहीं हुआ तो वो अफ़गानिस्तान होते हुए 326 ईसा पूर्व में पश्चिमोत्तर भारत पहुँच गया।
सिकंदर के भारत आने के बारे में कोई भारतीय स्रोत उपलब्ध नहीं है। सिकंदर के विजय अभियान की बात केवल यूनानी तथा रोमन स्रोतों में उपलब्ध है तथा उन्हें सत्य के करीब मान कर ये सब लिखा गया है। यूनानी ग्रंथ तो सिकंदर के भारत अभियान का विस्तार से वर्णन करते हैं पर वे कौटिल्य के बारे में एक शब्द भी नहीं लिखते हैं।
सिकंदर जब भारत पहुंचा तो पंजाब (अविभाजित पंजाब) में रावलपिंडी के पास का राजा उसकी सहायता के लिए पहँच गया। अन्य लगभग सभी राजाओं ने सिन्दर का डटकर मुकाबला किया पर वे सिकन्दर की अनुभवी सेनाओं से हार गए। यूनानी लेखकों ने इन राजाओं के वीरता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। इसके बाद झेलम और चिनाब के बीच स्थित प्रदेश का राजा पोरस (जो कि पौरव का यूनानी नाम लगता है) ने सिकंदर का वीरता पूर्वक सामना किया। कहा जाता है कि हारने के बाद जब वो दन्दी बनकर सिकन्दर के सामने पेश हुआ तो उससे पूछा गया - तुम्हारे साथ कैसा सुलूक (वर्ताव) किया जाय। तो उसने साहसी उत्तर दिया -" जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है "। उसके उत्तर पर मुग्ध होकर सिकन्दर ने उसका हारा हुआ प्रदेश लौटा दिया। इसके बाद जब उसे भारत के वीर योद्धा चन्द्रगुप्त मोर्य की विशाल सेना का सामना करना था तब भय से ग्रसित सेना को लेकर सिकन्दर आगे नहीं बढ़ सका और वापस लौट गया।
महाजनपद
मुख्य लेख : महाजनपद
बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तर निकाय के अनुसार कुल सोलह (16) महाजनपद थे - अवन्ति,अश्मक या अस्सक, अंगकम्बोजकाशीकुरुकोशलगांधारचेदिवज्जि या वृजि, वत्स या वंश, पांचालमगधमत्स्य या मच्छमल्लसुरसेन
इनमें सत्ता के लिए संघर्ष चलता रहता था।
मौर्य साम्राज्य
मुख्य लेख : मौर्य वंश
ईसापूर्व छठी सदी के प्रमुख राज्य थे - मगध, कोसल, वत्स के पौरव और अवंति के प्रद्योत। चौथी सदी में चन्द्रगुप्त मौर्यने पष्चिमोत्तर भारत को यूनानी शासकों से मुक्ति दिला दी। इसके बाद उसने मगध की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया जो उस समय नंदों के शासन में था। जैन ग्रंथ परिशिष्ठ पर्वन में कहा गया है कि चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त ने नंद राजा को पराजित करके बंदी बना लिया। इसके बाद चन्द्रगुप्त ने दक्षिण की ओर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के क्षत्रप सेल्यूकस को हाराया था जिसके फलस्वरूप उसने हेरातकंदहारकाबुल तथा बलूचिस्तान के प्रांत चंद्रगुप्त को सौंप दिए थे।
चन्द्रगुप्त के बाद बिंदुसार के पुत्र अशोक ने मौर्य साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचा दिया। कर्नाटक के चित्तलदुर्ग तथा मास्की में अशोक के शिलालेख पाए गए हैं। चुंकि उसके पड़ोसी राज्य चोलपांड्य या केरलपुत्रों के साथ अशोक या बिंदुसार के किसा लड़ाई का वर्णन नहीं मिलता है इसलिए ऐसा माना जाता है कि ये प्रदेश चन्द्रगुप्त के द्वारा ही जीता गया था। अशोक के जीवन का निर्णायक युद्ध कलिंग का युद्ध था। इसमें उत्कलों से लड़ते हुए अशोक को अपनी सेना द्वारा किए गए नरसंहार के प्रति ग्लानि हुई और उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया। फिर उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भी करवाया।
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में यूनानी राजदूत मेगास्थनीज़ , सेल्यूकस के द्वारा उनके दरबार में भेजा गया। उसने चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य तथा उसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) का वर्णन किया है। इस दौरान कला का भी विकास हुआ
मौर्यों के बाद
मौर्यों के पतन के बाद शुंग राजवंश ने सत्ता सम्हाली। ऐसा माना जाता है कि मौर्य राजा वृहदृथ के सेनापति पुष्यमित्र ने बृहद्रथ की हत्या कर दी थी जिसके बाद शुंग वंश की स्थापना हुई। शुंगों ने १८७ ईसापूर्व से ७५ ईसापूर्व तक शासन किया। इसी काल में महाराष्ट्र में सातवाहनों का और दक्षिण में चेरचोल और पांड्यों का उदय हुआ। सातवाहनों के साम्राज्य को आंध्र भी कहते हैं जो अत्यन्त शक्तिशाली था।
पुष्यमुत्र के शासनकाल में पश्चिम से यवनों का आक्रमण हुआ। इसी काल के माने जाने वाले वैयाकरण पतंजलि ने इस आक्रमण का उल्लेख किया है। कालिदास ने भी अपने मालविकाग्निमित्रम् में वसुमित्र के साथ यवनों के युद्ध का जिक्र किया है। इन आक्रमणकारियों ने भारत की सत्ता पर कब्जा कर लिया। कुछ प्रमुख भारतीय-यूनानी शासक थे - यूथीडेमस, डेमेट्रियस तथा मिनांडर। मिनांडर ने बौद्ध धर्म अपना लिया था तथा उसका प्रदेश अफगानिस्तान से पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था।
इसके बाद पह्लवों का शासन आया जिनके बारे में अधिक जानकारी उपल्ब्ध नहीं है। तत्पश्चात शकों का शासन आया। शक लोग मध्य एशिया के निवासी थे जिन्हें यू-ची नामक कबीले ने उनके मूल निवास से खदेड़ दिया गया था। इसके बाद वे भारत आए। इसके बाद यू-ची जनजाति के लोग भी भारत आ गए क्योंकि चीन की महान दीवार के बनने के बाद मध्य एशिया की परिस्थिति उनके अनूकूल नहीं थी। ये कुषाण कहलाए। कनिष्क इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था। कनिष्क ने ७८ ईसवी से १०१ ईस्वी तक राज किया।
समकालीन दक्षिण भारत
दक्षिण में चेर, पांड्य तथा चोल के बीच सत्ता संघर्ष चलता रहा था। संगम साहित्य इस समय की सबसे अमूल्य धरोहर थी। तिरूवल्लुवर द्वारा रचित तिरुक्कुरल तमिल भाषा का प्राचीनतम ग्रंघ माना जाता है। धार्मिक सम्प्रदायों का प्रचलन था और मुख्यतः वैष्णव, शैव, बौद्ध तथा जैन सम्प्रदायों के अनुयायी थे।
गुप्त काल
मुख्य लेख : गुप्त वंश
सन् ३२० ईस्वी में चन्द्रगुप्त प्रथम अपने पिता घटोत्कच के बाद राजा बना जिसने गुप्त वंश की नींव डाली। इसके बाद समुद्रगुप्त (३४० इस्वी), चन्द्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम(४१३-४५५ इस्वी) और स्कंदगुप्त शासक बने। इसके करीब १०० वर्षों तक गुप्त वंश का अस्तित्व बना रहा। ६०६ इस्वी में हर्ष के उदय तक किसी एक प्रमुख सत्ता की कमी रही। इस काल में कला और साहित्य का उत्तर तथा दक्षिण दोनों में विकास हुआ। इस काल का सबसे प्रतापी शासक "समुद्रगुप्त" था जिसके शासनकाल में भारत को "सोने की चिड़िया" कहा जाने लगा।
ग्यारहवीं तथा बारहवीं सदी में भारतीय कलाभाषा तथा धर्मका प्रचार दक्षिणपूर्व एशिया में भी हुआ।
प्राचीन भारत के राजवंश और उनके संस्थापक
वंश
राजधनी
संस्थापक
पाटलिपुत्र, वैशाली
पाटलिपुत्र
महापद्मनन्द
पाटलिपुत्र
चंद्रगुप्त मौर्य
पाटलिपुत्र
पुष्यमित्र शुंग
पाटलिपुत्र
वसुदेव
पैठन
सिमुक
सोत्थवती
महामोघवाहन
हिंद-यवन
शाकल ( सियालकेट )
डेमेट्रियस
कुजुल कडफिसेस
पुरूषपुर पेशावर
बनवासी
मयूरशर्मन
तलकाड
कोंकणिवर्मा
पाटलिपुत्र
श्रीगुप्त
कन्नौज
ईशानवर्मा
स्यालकोट
तोरमाण
वल्लभी
भट्टारक
पाटलिपुत्र
कृष्णगुप्त
कर्णसुवर्ण, मुर्शिदाबाद
शशांक
थानेश्वर
प्रभाकरवर्धन
गोपाल
राढ़
सामन्तसेन
मान्यखेत
दन्तिवर्मन
कन्नौज
नागभट्ट प्रथम
त्रिपुरी
कोक्कल प्रथम
धारा
कृष्णराज/ उपेन्द्र
अन्हिलवाड़
मूलराज प्रथम
खजुराहो
नन्नुक
कन्नौज
चन्द्रदेव
अजमेर
वासुदेव
ढिल्लिका
अनंगपाल
चालुक्य वंश(बादामी)
बादामी
पुलकेशिन प्रथम
चालुक्य वंश (कल्याणी)
मान्यखेत
तैलप द्वितीय
चालुक्य वंश (वेंगि)
वेंगि
विष्णुवर्धन
तंजौर, तंजावुर
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।